Tuesday 29 July 2014

वीरांगना तीलू रौतेली-अपूर्व शौर्य ,संकल्प और साहस की धनी



वीर भोग्य वसुंधरा के भारतीय इतिहास के प्राचीन और अर्वाचीन पन्नो को पलटें तो स्वर्णाक्षरों में अंकित वीर- वीरांगनाओं की अनगिनत कहानियां खुद ब खुद अपनी चमक बिखेर उठती है |भारत भूमि का कोई भी भू भाग ऐसा नहीं है जिसने वीर-वीरांगनाओ की फसल न उगाई हो |लेकिन बात यदि देवभूमि उत्तराखंड के सन्दर्भ में की जाय तो बात इसलिए भी मायने रखती है कि इस कठिन परिवेश में पहाड़ो का हौंसला रखने वाले न जाने कितने वीरों ने अपनी मातृभूमि के लिए जीवन उत्सर्ग कर दिया लेकिन इतिहास में उन्हें समुचित स्थान प्राप्त नहीं हो पाया और शायद स्थान प्राप्ति का उनका कोई उद्देश्य था भी नहीं| उन्ही वीर वीरांगनाओ में उत्तराखंड के चौन्दकोट गढ़ी के गुराड गाँव में गोर्ला रावतो के वंश में सत्रहवीं सदी में उत्पन्न तीलू रौतेली का नाम प्रमुखता से लिया जाता है |अपूर्व शौर्य ,संकल्प और साहस की धनी इस वीरांगना को गढ़वाल के इतिहास में झांसी की रानी कहकर याद किया जाता है | १५ से २२ वर्ष की आयु के मध्य सात वर्षो तक लगातार युद्ध लड़ने वाली तीलू संभवत: विश्व की एकमात्र वीरांगना है | तीलू रौतेली थोकदार भूप सिंह गोर्ला की पुत्री थी |१५ वर्ष की आयु में ही तीलू की मंगनी ईडा गाँव के भुप्पा नेगी के पुत्र के साथ हो गयी थी किन्तु नियति के क्रूर हाथों तीलू के पिता ,मंगेतर और दो भाईयों भगतु और पत्वा के प्राण कत्युरी राजा धामशाही और खैरागढ़ के मानशाही के मध्य हुए युद्ध के पश्चात कत्यूरियों के विरुद्ध युद्धोत्तर विद्रोह में समय पूर्व ही युद्ध भूमि में न्यौछावर हो गए थे | तीलू के लिए यह समय अत्यंत दुखदायी और कठिन परीक्षा का था | युवावस्था की दहलीज पर खड़ी तीलू कांडा में प्रतिवर्ष होने वाले मेले में, जहाँ पर उसके पिता और भाइयों का वध हुआ था, अपनी सहेलियों के साथ जाना चाहती थी लेकिन उसकी माँ ने क्रोधित होकर उससे उसके पिता और भाइयों के तर्पण हेतु धामशाही का खून लाने को कहा | उम्र के उस दौर में जब ह्रदय की सुकोमल संकल्पनाएँ अपनी ऊँचाइयों पर उड़ान भर रही होती है, तब तीलू हाथों में तलवार लिए शत्रुओं का मान मर्दन करने के लिए उठ खड़ी हुई | ठीक उसी तरह जिस तरह झाँसी की रानी अपनी सहेली झलकारी बाई के साथ अंग्रेजो से लोहा लिया था,शस्त्रों से लैस सैनिको तथा बिंदुली नाम की काले रंग की घोड़ी और सहेलियों बेल्लू और देवली को साथ लेकर उसने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी |सबसे पहले उसने खैरागढ़ को कत्यूरियों से मुक्त कराया |उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला,फिर वह अपने सैन्य दल के साथ सल्ट महादेव पहुंची |वहां से भी शत्रुओ का विनाश कर भिलंण भौण की ओर प्रस्थान किया लेकिन दुर्भाग्य से तीलू की दोनों प्रिय सहेलियों को इस युद्ध में मृत्यु का आलिंगन करना पड़ा |चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित करने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस लौट आई |कलिंका खाल में उसका शत्रुओ के साथ भीषण संग्राम हुआ |सराईखेत के युद्ध में उसने कई कत्यूरियों को मौत के घाट उतारकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया,यहीं पर उसकी बिंदुली घोड़ी शत्रु दल का शिकार भी बनी | इसके उपरान्त तल्ला कांडा शिविर के समीप पूर्वी नयार नदी के तट पर स्नान कर रही थी तो एक शत्रु सैनिक रामू रजवार ने धोखे से तीलू पर तलवार से वार कर दिया | नयार नदी तीलू के रक्त में रंग उठी थी और इसके साथ ही उस वीर बाला का अंत हो चुका था | |…बीरोंखाल में उसकी आदमकद मूर्ति आज भी उस वीर बाला की याद दिलाती है | तीलू कि याद में रण भूत नचाया जाता है . जबतीलू रौतेली नचाई जाती है तो अन्य बीरों के रण भूत /पश्वा जैसे शिब्बूपोखरियाल, घिमंडू हुडक्या, बेलु -पत्तू सखियाँ , नेगी सरदार आदि के पश्वाओंको भी नचाया जाता है . सबके सब पश्वा मंडांण में युद्ध नृत्य के साथ नाचते हैं |
जब तीलू रौतेली नचाई जाती है तो अन्य बीरों के रण भूत /पश्वा जैसे शिब्बू पोखरियाल, घिमंडू हुडक्या, बेलु -पत्तू सखियाँ , नेगी सरदार आदि के पश्वाओं को भी नचाया जाता है . सबके सब पश्वा मंडांण में युद्ध नृत्य के साथ नाचते हैं”

ओ तू साक्षी रैली पंच पाल देव
कालिका की देवी लंगडिया भैरों
ताडासर देव , अमर तीलु, सिंगनी शार्दूला धका धै धै |
जब तक भूमि , सूरज आसमान
तीलु रौतेली की तब तक याद रैली
धका धे धे तीलु रौतेली धका धै धै तीलु रौतेली धका धै धै |

एक किंवदंति के अनुसार १९६२ में भारत-चीन युद्ध के समय ७२ घंटे तक लगातार कई मोर्चो से एक साथ अकेले ही चीनियों से लोहा लेने वाले और मरणोपरांत महावीर चक्र प्राप्त पौड़ी गढ़वाल के गोर्ला राजपूत रायफल मैन जसवंत सिंह की अरुणाचल प्रदेश के नूर नांग पर्वत श्रेणियों में देवदूत स्वरूपा शीला नाम की जिस कन्या ने साये की तरह उसकी सहायता कर गोला बारूद और भोजन आदि की व्यवस्था कर उसे अकेले होने का अहसास तक नहीं होने दिया, वो और कोई नहीं उनकी पूर्वज वीर बाला तीलू रौतेली की आत्मा ही थी |.. किंवदंति कितनी सही है या गलत, लेकिन इतनी कम उम्र में उसके द्वारा प्रदर्शित अप्रतिम शौर्य , साहस और बलिदान को इतिहास में सदा ही याद रखा जायेगा |

No comments:

Post a Comment